सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बैंकों को लेकर अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि किसी भी खाताधारक को फ्रॉड घोषित करने से पहले बैंकों को उनका पक्ष भी सुनना चाहिए। कर्ज लेने वाले की भी सुनवाई होनी चाहिए। इसके बाद बैंकों को कोई फैसला लेना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ये एक तरह से लोन लेने वालों को ब्लैक लिस्ट में डालने के समान होता है।
उधारकर्ता को सुनवाई का अवसर मिले
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के एक फैसले को कायम रखते हुए कहा कि खातों को धोखाधड़ी वाले के रूप में वर्गीकृत करने से उधारकर्ताओं के लिए अन्य परिणाम भी सामने आते हैं। उनकी सिबिल पर गंभीर असर पड़ता है। ऐसे में उन्हें सुनवाई का एक मौका मिलना चाहिए।
एसबीआई की याचिका पर आया ये फैसला
पीठ ने कहा है कि उधारकर्ताओं के खातों को जालसाजी संबंधी मास्टर डायरेक्शन के तहत धोखाधड़ी वाले के रूप में वर्गीकृत करने से पहले बैंक को उन्हें सुनवाई का अवसर देना चाहिए। कोर्ट का यह फैसला स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की याचिका पर आया है।
तेलंगाना हाईकोर्ट का फैसला बरकरार
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि धोखाधड़ी के रूप में खातों का वर्गीकरण उधारकर्ताओं के लिए नागरिक परिणामों में होता है। ऐसे व्यक्तियों को सुनवाई का अवसर जरूर मिलना चाहिए।
लोन लेने में सबसे ज्यादा युवा
बीते दिनों जारी हुई थी एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक तिमाही में बैंक में लोन के लिए आवेदन करने वालों की 43 प्रतिशत लोगों की उम्र 18 से 43 साल थे, जो पर्सनल लोन लेना चाहते है। ऐसे में कर्जदारों को फ्रॉड घोषित करने से पहले बैंक को एक बार उनकी बात भी सुननी चाहिए।
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